“एक कर्मचारी के घर 15 लाख मिल जाएं तो उसे जेल भेज दिया जाएगा, जज के घर 15 करोड़ मिल गए तो उसे इनाम दिया जा रहा है”: अनिल तिवारी, वकील
दिल्ली, 21 मार्च 2025 – वकील अनिल तिवारी ने एक अहम बयान में भारतीय न्याय व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यदि एक आम कर्मचारी के घर 15 लाख रुपये मिलते हैं, तो उसे भ्रष्टाचार के आरोप में तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है। वहीं, अगर किसी उच्च पदस्थ अधिकारी, जैसे कि जज के घर 15 करोड़ रुपये मिलते हैं, तो उसे न केवल बरी किया जाता है, बल्कि ऐसे मामलों में उसे सम्मानित भी किया जाता है। तिवारी ने यह टिप्पणी उस समय की जब हाल ही में एक वरिष्ठ जज के घर से भारी रकम की बरामदगी हुई थी, और इसके बावजूद उन्हें कोई सजा नहीं दी गई।
एक कर्मचारी के घर 15 लाख मिल जाएं तो उसे जेल भेज दिया जाएगा
— Bolta Hindustan (@BoltaHindustan) March 21, 2025
जज के घर 15 करोड़ मिल गए तो उसे इनाम दिया जा रहा है : अनिल तिवारी, वकील pic.twitter.com/k8eDBJY1Q2
उनका कहना था, “यह हमारे समाज और न्याय व्यवस्था का सबसे बड़ा उदाहरण है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार को लेकर दोहरे मापदंड अपनाए जाते हैं। एक सामान्य कर्मचारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता है और उसे कठोर सजा दी जाती है, जबकि उच्च पदस्थ अधिकारी और न्यायधीशों के मामले में ऐसे मामलों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।”
अनिल तिवारी ने इस पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि यह स्थिति न्यायपालिका और प्रशासन की विश्वसनीयता को खतरे में डालती है। उन्होंने कहा, “इससे लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था पर से उठ सकता है। जब तक इस तरह के भ्रष्टाचार के मामलों में समान और निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक सिस्टम पर सवाल उठते रहेंगे।”
वकील के आरोपों का संदर्भ
यह टिप्पणी उस समय आई है जब हाल ही में एक वरिष्ठ जज के घर से 15 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए थे, जिसके बाद सोशल मीडिया पर यह मामला सुर्खियों में आ गया था। हालांकि, जज को अभी तक किसी भी प्रकार की सजा नहीं दी गई है, जिससे न्यायपालिका और सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
आगे की राह
अनिल तिवारी का मानना है कि न्यायिक सुधार और सरकारी तंत्र में पारदर्शिता की सख्त जरूरत है। उन्होंने मांग की कि भ्रष्टाचार के मामलों में समान सजा और कार्रवाई हो, ताकि हर नागरिक को एक समान न्याय मिल सके, चाहे वह किसी भी वर्ग का हो।
स्रोत: satish mehra | कानूनी संवाददाता